मानवता की देवी
नित्य होते ह़ी भोर
मंदिर के घंटे की टन टन
बुलाती लेती है , अपनी ओर !
जल अछत नैवेद्य पुष्प ले
चढ़ने लगता हूँ देवालय की सीढियां !
आज का दिन कुछ विशेष था
नवरात्रि का पहला पहला दिन था !
किन्तु , अचानक मेरे पाँव पहुँच गए ,
पिछवाड़े
रग्घू के घर ,
जिसके आँगन ने मिला लिया था
मुख्यद्वार को अपने में !
एकलौती कच्ची कोठरी बची थी ,
आधे कपड़ों थे तन ढकने को !
रात से ह़ी उसकी ६ माह की बिटिया "देवी"
चीखती ह़ी जा रही थी !
मैंने पूछा --कम्मो ! तेरी बिटिया क्यूं रो रही है ?
सिसकते , सहमते बोली --काका मै तो नवराते से हूँ
पर इस के लिए न दूध है न ह़ी पैसे
दूधिये ने भी तो उधारी बंद कर दी है !
तभी अन्तःकरण के आकाश से सुनाई दी
एक गूँज
मेरे मंदिर बाद में आना
तू , पहले इस मानवता की देवी को पूज !
...करुणा का झरना फूट पड़ा अंतस में
मेरे बंजर ह्रदय को डिबो गया !!
अनन्त पथ का पथिक
स्वामी अनन्त चैतन्य
लखनऊ
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