मंगलवार, 31 अगस्त 2010

मानवता की देवी



मानवता की देवी


नित्य होते ह़ी भोर

मंदिर के घंटे की टन टन

बुलाती लेती है , अपनी ओर !

जल अछत नैवेद्य पुष्प ले

चढ़ने लगता हूँ देवालय की सीढियां !

आज का दिन कुछ विशेष था

नवरात्रि का पहला पहला  दिन था !

किन्तु , अचानक मेरे पाँव पहुँच गए ,

पिछवाड़े

रग्घू के घर ,

जिसके आँगन ने मिला लिया था

मुख्यद्वार को अपने में !

एकलौती कच्ची कोठरी बची थी ,

आधे कपड़ों थे तन ढकने को !

रात से ह़ी उसकी ६ माह की बिटिया "देवी"

चीखती ह़ी जा रही थी !

मैंने पूछा --कम्मो ! तेरी बिटिया क्यूं रो रही है ?

सिसकते , सहमते बोली --काका मै तो नवराते से हूँ

पर इस के लिए न दूध है न ह़ी पैसे

दूधिये ने भी तो उधारी बंद कर दी है !

तभी अन्तःकरण के आकाश से सुनाई दी

एक  गूँज 

मेरे मंदिर बाद में आना

तू , पहले इस मानवता की देवी को पूज  !

...करुणा का झरना फूट पड़ा अंतस में

मेरे बंजर ह्रदय को डिबो गया !!



अनन्त पथ का पथिक

स्वामी अनन्त चैतन्य
लखनऊ


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