अनंत प्रेम
प्रेम शब्दों में नहीं बाँधा जा सकता ...यह कोई वासना नहीं वरन परम पवित्रतम भाव दशा है ऊर्जा का अनंत श्रोत ..सबसे सरल साधना ..बस अत्याधिक प्यास होनी चाहिए ..........साथ साथ चलते है इस पथ पर ..बिना किसी शर्त के ! तो आओ मेरे साथ .......
शनिवार, 11 सितंबर 2010
गुरुवार, 9 सितंबर 2010
मंगलवार, 7 सितंबर 2010
मुरली बन खाली हो जाओ !!
मुरली बन खाली हो जाओ ,
कृष्ण अधर पर धर लेंगे !
जीवन की सम्पूर्ण रिक्तता ,
मधुर स्वरों में भर देंगे !!
मरे मरे हो गए काठ से ,
पत्थर दिल क्यों बन बैठे !
कमल बनो कीचड में रहकर ,
दल दल से तुम दूर रहो !!
दूषित गन्दा है समाज तो ,
रहने दो तुम स्वच्छ रहो !
गंध सुवासित अपनी सदा ह़ी , ,
जन जन तक पहुचाते रहो !!
शीतल मंद सुगंध मलय युत ,
पवन संग सर्वत्र बहो !
आत्मशुद्धि हो जाएगी तुम ,
सदगुरु संग तनमन से रहो !!
चुनाव रहित तेरी हो सजगता ,
सूत्र यही अपनाते रहो !
अस्तित्व तुम्हे संभाल रखे है,
साधक बन साधना करो !!
पाप ,पुण्य और स्वर्ग नरक की
बातों से बस दूर रहो !
पूर्ण सजग हो ध्यान करो बस ,
आडम्बरों में नहीं पड़ो !!
चैतन्य रहो , चल पड़ो पथिक बन ,
अनन्त पथ पर निकल पड़ो !
ध्यान करो , ध्यानी बन जाओ ,
शुद्धता के प्रतीक बनो !!
अनन्त पथ का पथिक ,
स्वामी अनन्त चैतन्य
लखनऊ
मंगलवार, 31 अगस्त 2010
मानवता की देवी
मानवता की देवी
नित्य होते ह़ी भोर
मंदिर के घंटे की टन टन
बुलाती लेती है , अपनी ओर !
जल अछत नैवेद्य पुष्प ले
चढ़ने लगता हूँ देवालय की सीढियां !
आज का दिन कुछ विशेष था
नवरात्रि का पहला पहला दिन था !
किन्तु , अचानक मेरे पाँव पहुँच गए ,
पिछवाड़े
रग्घू के घर ,
जिसके आँगन ने मिला लिया था
मुख्यद्वार को अपने में !
एकलौती कच्ची कोठरी बची थी ,
आधे कपड़ों थे तन ढकने को !
रात से ह़ी उसकी ६ माह की बिटिया "देवी"
चीखती ह़ी जा रही थी !
मैंने पूछा --कम्मो ! तेरी बिटिया क्यूं रो रही है ?
सिसकते , सहमते बोली --काका मै तो नवराते से हूँ
पर इस के लिए न दूध है न ह़ी पैसे
दूधिये ने भी तो उधारी बंद कर दी है !
तभी अन्तःकरण के आकाश से सुनाई दी
एक गूँज
मेरे मंदिर बाद में आना
तू , पहले इस मानवता की देवी को पूज !
...करुणा का झरना फूट पड़ा अंतस में
मेरे बंजर ह्रदय को डिबो गया !!
अनन्त पथ का पथिक
स्वामी अनन्त चैतन्य
लखनऊ
सोमवार, 30 अगस्त 2010
" प्रेम " की रेखा गणित
" प्रेम " की रेखा गणित
" प्रेम " दो विपरीत ध्रुवों पर स्थित .
दो बिन्दुओं से निर्मित .
रेखा नहीं है !
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समानांतर विचारों से युत
दो रेखाए भी नहीं !
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आपस में क्रास करती ,
आपस में क्रास करती ,
एक दूजे का हृदय चीरती ,
रेखा तो कदापि नहीं !
" प्रेम " तो पवित्र मिलन है
तन मन व् आत्मा के तल का !
तीनो मिलकर
एक पवित्र त्रिकोण बनाते है !
संगम होता है तीनो का
वही सिर्फ वही " प्रेम " घटता है !
रेखाए समा लेती है
एक दूजे को सहज भाव से
फिर सीमा विहीन होकर
चल पड़ती है ..साथ साथ
विराम रहित अनन्त पथ पर !
प्यार का सिम्बल भी तो ,
त्रिकोणीय है ,
और भी विशेष हो जाती है
जब झुक जाती है
एक दूजे के लिए
ले लेती है आकार
एक दिव्य हृदय का !
ईश्वरीय " प्रेम " भी तो
दो त्रिकोणों का समागम है
जहाँ शिव शिवा विलीन हो जाते है ,
एक दूजे में ,
अर्धनारेश्वर बनकर ,
यही तंत्र का दिव्य नृत्य है
यही " प्रेम " का रेखा गणित है !!
अनन्त पथ का पथिक
स्वामी अनन्त चैतन्य
लखनऊ
मंगलवार, 24 अगस्त 2010
अलौकिक स्वप्न
अलौकिक स्वप्न
सोया था मै सघन नींद में ,
नरम गरम बिस्तर पर !
अवचेतन मन निकल पड़ा तब ,
दूर देश के सफ़र पर !!
जा पंहुचा तब दिव्य सुगन्धित ,
सुन्दरतम उपवन में !
खिली चाँदनी मंद पवन था ,
दिव्य सुगंध चमन में !!
रजनी गंधा बेला चमेली ,
खिली रात रानी थी !
गमक रहे थे महक में सारे ,
खुशबू अनजानी थी !!
झील एक थी नीली गहरी ,
उतर गया था चाँद गगन से !
कुमोदिनी थी प्यार में पागल ,
प्रेम पूर्ण थी अंतरतम में !!
टीम टीम नीले गगन की गंगा ,
झील में समां गयी थी !
झिलमिल करते लहरे के संग ,
गीत प्रेम के सुना रही थी !!
रुनझुन रुनझुन करती हुई ,
तब एक परी वहां आई !
प्रेमपूर्ण अधरों से बोली ,
अमृत रस मै लायी !!
दे स्पर्श परम आनन्दित,
लेकर गयी झील के पास !
नौका विहार करेंगे संग संग ,
हो जाए कुछ प्रेम से बात !!
गहरी झील में नशा था गहरा
मस्ती भरा मौसम था !
धवल श्वेत परिधानों में थी ,
स्वर्ण कमल सा तन था !!
मौन में बाते घटी जा रही ,
प्यार में भीगा मन था !
नहीं वासना तन में कोई ,
गंगा जल सा मन था !!
वृन्दावन सा रास चल रहा ,
अलौकिक प्रेम देश था !
कुमोदिनी चंदा के संग थी,
कमल में बंद भ्रमर था !!
झिलमिल तारे झील में उतरे,
उनके प्रिया का घर था !
खुशबू संग अठखेली करता,
प्रेम में मस्त पवन था !!
टिकटिक करती घडी ने बोला ,
समय हुआ उठने का !
स्वप्न जगत से लौटो प्यारे ,
सूरज है उगने का !!
अनन्त पथ का पथिक
स्वामी अनन्त चैतन्य
लखनऊ
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