मंगलवार, 7 सितंबर 2010

मुरली बन खाली हो जाओ !!


मुरली बन खाली हो जाओ ,
कृष्ण अधर पर धर लेंगे !
जीवन की सम्पूर्ण रिक्तता ,
मधुर स्वरों में भर देंगे !!

मरे मरे हो गए काठ से ,
पत्थर दिल क्यों बन बैठे !
कमल बनो कीचड में रहकर ,
दल दल से तुम दूर रहो !!

दूषित गन्दा है समाज तो ,
रहने दो तुम स्वच्छ रहो !
गंध सुवासित अपनी सदा ह़ी , ,
जन जन तक पहुचाते रहो !!

शीतल मंद सुगंध मलय युत ,
पवन संग सर्वत्र बहो !
आत्मशुद्धि हो जाएगी तुम ,
सदगुरु संग तनमन से रहो !!

चुनाव रहित तेरी हो सजगता ,
सूत्र यही अपनाते रहो !
अस्तित्व तुम्हे संभाल रखे है,
साधक बन साधना करो !!

पाप ,पुण्य और स्वर्ग नरक की
बातों से बस दूर रहो !
पूर्ण सजग हो ध्यान करो बस ,
आडम्बरों में नहीं पड़ो !!

चैतन्य रहो , चल पड़ो पथिक बन ,
अनन्त पथ पर निकल पड़ो !
ध्यान करो , ध्यानी बन जाओ ,
शुद्धता के प्रतीक बनो !!


अनन्त पथ का पथिक ,
स्वामी अनन्त चैतन्य
लखनऊ

मंगलवार, 31 अगस्त 2010

मानवता की देवी



मानवता की देवी


नित्य होते ह़ी भोर

मंदिर के घंटे की टन टन

बुलाती लेती है , अपनी ओर !

जल अछत नैवेद्य पुष्प ले

चढ़ने लगता हूँ देवालय की सीढियां !

आज का दिन कुछ विशेष था

नवरात्रि का पहला पहला  दिन था !

किन्तु , अचानक मेरे पाँव पहुँच गए ,

पिछवाड़े

रग्घू के घर ,

जिसके आँगन ने मिला लिया था

मुख्यद्वार को अपने में !

एकलौती कच्ची कोठरी बची थी ,

आधे कपड़ों थे तन ढकने को !

रात से ह़ी उसकी ६ माह की बिटिया "देवी"

चीखती ह़ी जा रही थी !

मैंने पूछा --कम्मो ! तेरी बिटिया क्यूं रो रही है ?

सिसकते , सहमते बोली --काका मै तो नवराते से हूँ

पर इस के लिए न दूध है न ह़ी पैसे

दूधिये ने भी तो उधारी बंद कर दी है !

तभी अन्तःकरण के आकाश से सुनाई दी

एक  गूँज 

मेरे मंदिर बाद में आना

तू , पहले इस मानवता की देवी को पूज  !

...करुणा का झरना फूट पड़ा अंतस में

मेरे बंजर ह्रदय को डिबो गया !!



अनन्त पथ का पथिक

स्वामी अनन्त चैतन्य
लखनऊ


सोमवार, 30 अगस्त 2010

" प्रेम " की रेखा गणित

" प्रेम " की रेखा गणित


" प्रेम " दो विपरीत ध्रुवों पर स्थित .
दो बिन्दुओं से निर्मित .
रेखा नहीं है !
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समानांतर विचारों से युत
दो रेखाए भी नहीं !
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आपस में क्रास करती ,
एक दूजे का हृदय चीरती ,
रेखा तो कदापि नहीं !




" प्रेम " तो पवित्र मिलन है
तन मन व् आत्मा के तल का !
तीनो मिलकर
एक पवित्र त्रिकोण बनाते है !
संगम होता है तीनो का
वही सिर्फ वही " प्रेम " घटता है !
रेखाए समा लेती है
एक दूजे को सहज भाव से
फिर सीमा विहीन होकर
चल पड़ती है ..साथ साथ
विराम रहित अनन्त पथ पर !

प्यार का सिम्बल भी तो ,
त्रिकोणीय है ,
और भी विशेष हो जाती है
जब झुक जाती है
एक दूजे के लिए
ले लेती है आकार
एक दिव्य हृदय का !




ईश्वरीय " प्रेम " भी तो
दो त्रिकोणों का समागम है
जहाँ शिव शिवा विलीन हो जाते है ,
एक दूजे में ,
अर्धनारेश्वर बनकर ,
यही तंत्र का दिव्य नृत्य है
यही " प्रेम " का रेखा गणित है !!

अनन्त पथ का पथिक

स्वामी अनन्त चैतन्य
लखनऊ

मंगलवार, 24 अगस्त 2010

अलौकिक स्वप्न


अलौकिक स्वप्न

सोया था मै सघन नींद में ,

नरम गरम बिस्तर पर !

अवचेतन मन निकल पड़ा तब ,

दूर देश के सफ़र पर !!


 
जा पंहुचा तब दिव्य सुगन्धित ,

सुन्दरतम उपवन में !

खिली चाँदनी मंद पवन था ,

दिव्य सुगंध चमन में !!

रजनी गंधा बेला चमेली ,

खिली रात रानी थी !

गमक रहे थे महक में सारे ,

खुशबू अनजानी थी !!


झील एक थी नीली गहरी ,

उतर गया था चाँद गगन से !

कुमोदिनी थी प्यार में पागल ,

प्रेम पूर्ण थी अंतरतम में !!

टीम टीम नीले गगन की गंगा ,

झील में समां गयी थी !

झिलमिल करते लहरे के संग ,

गीत प्रेम के सुना रही थी !!


रुनझुन रुनझुन करती हुई ,

तब एक परी वहां आई !

प्रेमपूर्ण अधरों से बोली ,

अमृत रस मै लायी !!

दे स्पर्श परम आनन्दित,

लेकर गयी झील के पास !


नौका विहार करेंगे संग संग ,

हो जाए कुछ प्रेम से बात !!

गहरी झील में नशा था गहरा

मस्ती भरा मौसम था !

धवल श्वेत परिधानों में थी ,

स्वर्ण कमल सा तन था !!

मौन में बाते घटी जा रही ,

प्यार में भीगा मन था !

नहीं वासना तन में कोई ,

गंगा जल सा मन था !!

वृन्दावन सा रास चल रहा ,

अलौकिक प्रेम देश था !

कुमोदिनी चंदा के संग थी,

कमल में बंद भ्रमर था !!

झिलमिल तारे झील में उतरे,

उनके प्रिया का घर था !

खुशबू संग अठखेली करता,

प्रेम में मस्त पवन था !!

टिकटिक करती घडी ने बोला ,

समय हुआ उठने का !

स्वप्न जगत से लौटो प्यारे ,

सूरज है उगने का !!


अनन्त पथ का पथिक
स्वामी अनन्त चैतन्य
लखनऊ

 



शनिवार, 14 अगस्त 2010

प्रेम पियाला




प्रेम पियाला

पोथी पढ़ी- पढ़ी जग मुआ, पंडित भया न कोई !
ढाई आखर प्रेम का         पढ़े सो पंडित होय !!

प्रेम न खेती उपजै,           प्रेम न हाट बिकाय !
राजा प्रजा जेहि रुचे,          सीस देहि ले जाय !!

जो घट प्रेम न संचारे,     जो घट जान सामान !
जैसे खाल लुहार की,       सांस लेत बिनु प्राण !!

जल में बसे कमोदनी,          चंदा बसे आकाश !
जो है जा की  भावना          सो ताहि के पास !!

प्रेम    पियाला जो पिए,         सिस दक्षिणा देय !
लोभी शीश न दे सके,        नाम प्रेम का लेय !!

प्रेम भाव एक चाहिए,           भेष अनेक बनाये !
चाहे घर में बास कर,         चाहे बन को जाए !!

                                             --  संत कबीर




अनंत पथ का पथिक


स्वामी अनंत चैतन्य
लखनऊ

गुरुवार, 12 अगस्त 2010




एक पाती --- प्रियतम ( इश्वर ) के नाम


पाती प्रियतम तुम्हे लिख रही
शब्द नहीं ये भाव है !
इसको तुम फुर्सत में पढ़ना
अश्रुपूर्ण उदगार है !!


ख़त क्यों लिखना पड़ता है
जब होता नहीं दीदार है !
पत्थर दिल न बनना प्रियतम
कैसे कहू मै , प्यार है !!


ग्रन्थ बताते तू फैला है
सारे जहाँ संसार में !
मुझे सूझ नहीं पड़ता प्यारे
ज्ञान के इस व्यापार में !!


कैसे समझू ज्ञान की बाते
शास्त्र नहीं यह प्यार है !
जब तक तुम मुझ से न मिलोगे
यही तलक तकरार है !!


सुनी सुनाई बाते प्रियतम
मन नहीं बहला पाएगी !
राधा मीरा को तुम मिले थे
इतने से ख़ुशी न आएगी !!


मुझ को जब तक तुम न मिलो
तब तक कैसे मानू !
पत्थर दिल मेरे मीत , प्रीति
प्रियतम कैसे जानू !!


इस विरहन की विरह नही क्या
तुन्हें समझ  आती !
कैसे समझाऊ मै ख़त में
लाज मुझे आती !!



एक बार बस एक बार प्रिय
पास मेरे आओ !
तन मन सब वारि कर दूँगी
अधिक न तरसाओ !!


प्यास नहीं मिट सकती जब तक
तुम न मिल जाओ !
जाओ मै तुम से न बोलू
और न तडपाओ !!


सोलह सिंगार किये मै मिलूंगी
द्वार मेरे आओ !
प्यास बुझा संतृप्ति देकर
दरसन दे जाओ !!



अनंत प्रेम किया है तुम से
अब क्यू बिसरावे !
सेज सजी है फूलो भरी प्रिय
काहे न घर आवे !!



अनंत पथ का पथिक

स्वामी अनंत चैतन्य
लखनऊ