शनिवार, 14 अगस्त 2010

प्रेम पियाला




प्रेम पियाला

पोथी पढ़ी- पढ़ी जग मुआ, पंडित भया न कोई !
ढाई आखर प्रेम का         पढ़े सो पंडित होय !!

प्रेम न खेती उपजै,           प्रेम न हाट बिकाय !
राजा प्रजा जेहि रुचे,          सीस देहि ले जाय !!

जो घट प्रेम न संचारे,     जो घट जान सामान !
जैसे खाल लुहार की,       सांस लेत बिनु प्राण !!

जल में बसे कमोदनी,          चंदा बसे आकाश !
जो है जा की  भावना          सो ताहि के पास !!

प्रेम    पियाला जो पिए,         सिस दक्षिणा देय !
लोभी शीश न दे सके,        नाम प्रेम का लेय !!

प्रेम भाव एक चाहिए,           भेष अनेक बनाये !
चाहे घर में बास कर,         चाहे बन को जाए !!

                                             --  संत कबीर




अनंत पथ का पथिक


स्वामी अनंत चैतन्य
लखनऊ

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