गुरुवार, 12 अगस्त 2010




एक पाती --- प्रियतम ( इश्वर ) के नाम


पाती प्रियतम तुम्हे लिख रही
शब्द नहीं ये भाव है !
इसको तुम फुर्सत में पढ़ना
अश्रुपूर्ण उदगार है !!


ख़त क्यों लिखना पड़ता है
जब होता नहीं दीदार है !
पत्थर दिल न बनना प्रियतम
कैसे कहू मै , प्यार है !!


ग्रन्थ बताते तू फैला है
सारे जहाँ संसार में !
मुझे सूझ नहीं पड़ता प्यारे
ज्ञान के इस व्यापार में !!


कैसे समझू ज्ञान की बाते
शास्त्र नहीं यह प्यार है !
जब तक तुम मुझ से न मिलोगे
यही तलक तकरार है !!


सुनी सुनाई बाते प्रियतम
मन नहीं बहला पाएगी !
राधा मीरा को तुम मिले थे
इतने से ख़ुशी न आएगी !!


मुझ को जब तक तुम न मिलो
तब तक कैसे मानू !
पत्थर दिल मेरे मीत , प्रीति
प्रियतम कैसे जानू !!


इस विरहन की विरह नही क्या
तुन्हें समझ  आती !
कैसे समझाऊ मै ख़त में
लाज मुझे आती !!



एक बार बस एक बार प्रिय
पास मेरे आओ !
तन मन सब वारि कर दूँगी
अधिक न तरसाओ !!


प्यास नहीं मिट सकती जब तक
तुम न मिल जाओ !
जाओ मै तुम से न बोलू
और न तडपाओ !!


सोलह सिंगार किये मै मिलूंगी
द्वार मेरे आओ !
प्यास बुझा संतृप्ति देकर
दरसन दे जाओ !!



अनंत प्रेम किया है तुम से
अब क्यू बिसरावे !
सेज सजी है फूलो भरी प्रिय
काहे न घर आवे !!



अनंत पथ का पथिक

स्वामी अनंत चैतन्य
लखनऊ


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