मंगलवार, 24 अगस्त 2010

अलौकिक स्वप्न


अलौकिक स्वप्न

सोया था मै सघन नींद में ,

नरम गरम बिस्तर पर !

अवचेतन मन निकल पड़ा तब ,

दूर देश के सफ़र पर !!


 
जा पंहुचा तब दिव्य सुगन्धित ,

सुन्दरतम उपवन में !

खिली चाँदनी मंद पवन था ,

दिव्य सुगंध चमन में !!

रजनी गंधा बेला चमेली ,

खिली रात रानी थी !

गमक रहे थे महक में सारे ,

खुशबू अनजानी थी !!


झील एक थी नीली गहरी ,

उतर गया था चाँद गगन से !

कुमोदिनी थी प्यार में पागल ,

प्रेम पूर्ण थी अंतरतम में !!

टीम टीम नीले गगन की गंगा ,

झील में समां गयी थी !

झिलमिल करते लहरे के संग ,

गीत प्रेम के सुना रही थी !!


रुनझुन रुनझुन करती हुई ,

तब एक परी वहां आई !

प्रेमपूर्ण अधरों से बोली ,

अमृत रस मै लायी !!

दे स्पर्श परम आनन्दित,

लेकर गयी झील के पास !


नौका विहार करेंगे संग संग ,

हो जाए कुछ प्रेम से बात !!

गहरी झील में नशा था गहरा

मस्ती भरा मौसम था !

धवल श्वेत परिधानों में थी ,

स्वर्ण कमल सा तन था !!

मौन में बाते घटी जा रही ,

प्यार में भीगा मन था !

नहीं वासना तन में कोई ,

गंगा जल सा मन था !!

वृन्दावन सा रास चल रहा ,

अलौकिक प्रेम देश था !

कुमोदिनी चंदा के संग थी,

कमल में बंद भ्रमर था !!

झिलमिल तारे झील में उतरे,

उनके प्रिया का घर था !

खुशबू संग अठखेली करता,

प्रेम में मस्त पवन था !!

टिकटिक करती घडी ने बोला ,

समय हुआ उठने का !

स्वप्न जगत से लौटो प्यारे ,

सूरज है उगने का !!


अनन्त पथ का पथिक
स्वामी अनन्त चैतन्य
लखनऊ

 



1 टिप्पणी: