अलौकिक स्वप्न
सोया था मै सघन नींद में ,
नरम गरम बिस्तर पर !
अवचेतन मन निकल पड़ा तब ,
दूर देश के सफ़र पर !!
जा पंहुचा तब दिव्य सुगन्धित ,
सुन्दरतम उपवन में !
खिली चाँदनी मंद पवन था ,
दिव्य सुगंध चमन में !!
रजनी गंधा बेला चमेली ,
खिली रात रानी थी !
गमक रहे थे महक में सारे ,
खुशबू अनजानी थी !!
झील एक थी नीली गहरी ,
उतर गया था चाँद गगन से !
कुमोदिनी थी प्यार में पागल ,
प्रेम पूर्ण थी अंतरतम में !!
टीम टीम नीले गगन की गंगा ,
झील में समां गयी थी !
झिलमिल करते लहरे के संग ,
गीत प्रेम के सुना रही थी !!
रुनझुन रुनझुन करती हुई ,
तब एक परी वहां आई !
प्रेमपूर्ण अधरों से बोली ,
अमृत रस मै लायी !!
दे स्पर्श परम आनन्दित,
लेकर गयी झील के पास !
नौका विहार करेंगे संग संग ,
हो जाए कुछ प्रेम से बात !!
गहरी झील में नशा था गहरा
मस्ती भरा मौसम था !
धवल श्वेत परिधानों में थी ,
स्वर्ण कमल सा तन था !!
मौन में बाते घटी जा रही ,
प्यार में भीगा मन था !
नहीं वासना तन में कोई ,
गंगा जल सा मन था !!
वृन्दावन सा रास चल रहा ,
अलौकिक प्रेम देश था !
कुमोदिनी चंदा के संग थी,
कमल में बंद भ्रमर था !!
झिलमिल तारे झील में उतरे,
उनके प्रिया का घर था !
खुशबू संग अठखेली करता,
प्रेम में मस्त पवन था !!
टिकटिक करती घडी ने बोला ,
समय हुआ उठने का !
स्वप्न जगत से लौटो प्यारे ,
सूरज है उगने का !!
अनन्त पथ का पथिक
स्वामी अनन्त चैतन्य
लखनऊ
बहुत अच्छी खुबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंlatest postएक बार फिर आ जाओ कृष्ण।